
मैं झूमता हुआ चलता था, कभी उन लहरों की मस्ती में
कभी इधर, कभी उधर बिना किसी चिंता के।
मैं सवारियां भी ले जाता था, इस छोर से उस छोर तक,
जब सूरज की किरणें मुझे देखती थीं एक टक।
मैं बड़ा ही मज़बूत था,
बड़ी से बड़ी लहरों में मैं नही डगमगाया।
पूरी ताकत से चीर उन लहरों को,
यात्रियों को उस पार पहुँचाया।
परन्तु आज मेरे ऊपर कुछ अत्यधिक भार है,
ये यात्री जिम्मेदारी से बढ़कर हो गए हैं।
इनके वज़न तले मैं अब दबा जा रहा हूँ,
उस पार जाने की आकांक्षा तो मुझमे है, पर मैं क्या करूँ?
एक ओर जिम्मेदारी का दबाव,
तो दूसरी ओर उन कठोर लहरों का बहाव।
इन सबने मुझे हानि पहुंचाई है,
और इस कारण मेरा तल कमज़ोर बन गया है।
धीरे-धीरे पानी मेरे भीतर आने लगा है,
और इस कारण मेरी मादकता एवं हिम्मत डगमगाने लगी है।
मैं कब तक संभाले रख पाउँगा खुदको?
मैं जीना तो चाहता हूँ पर कोई राह नही दिख रही मुझको।
अब चूँकि मेरे अन्दर असफलताएँ भरने लगी हैं,
ये मुझपर आतंरिक दबाव डाल रही हैं।
ऐसा लग रहा है कि जो नदी पहले मेरे जीवन की ज़रूरत थी,
आज वही नदी मेरी कब्र को भी स्थान देगी।
heyy... nice poem... another gr8 one frm u... u are awesum in hindi poems 2... :)
ReplyDeletegood.
ReplyDeletethat's all i can say...
shocked to see u write in hindi too.